यादों की बातें, ना मेलों का मंजर है,
तन्हा ही है, सिर्फ तन्हा रह जाना है ।
शाखाएं, पंक्षी शांत हो चुके हैं
सूरज को उगना है, ढ़ल जाना है ।
कितना छेड़ोगे धान की बालियों को,
हवा ने मुख मोड़ा है, सबको रुक जाना है ।
महफिल में कहकहे लगते रहेंगे हमेशा,
नज़र को अब चुपचाप निकल जाना है ।
नदियां सूखी हैं, सागर भी सुखा है,
लम्हों की बात है, लम्हों में मिट जाना है।
Friday, December 1, 2006
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