Friday, December 1, 2006

हवा के पर भी अब कतरने लगे हैं

झोंका आया है, हवा ही होगी, चलो सांस ले लें
सुना है, हवा के पर भी अब कतरने लगे हैं ।

आगे की सोच समय के साथ होना होगा
तन्हाईयों के सिलसिले, कुम्हालाने लगे हैं ।

चांद पकड़ने न जा, किसी ने फेंका है कंकड़ पानी में
महफिल में शे’र दूसरे पढ़े अब जाने लगे हैं ।


किस्सा पर-पल की संजीदगी का है
परिवर्तन के दौर में आदमी संगदिल होने लगे हैं ।

था एहसास चांदनी अब भी छत पर टहल रही होगी
चांद कहीं दूर, घरौंदा ढूंढने में अब लगे हैं ।

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