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दस्तक (अनुपम वर्मा की कविताएं)
Friday, December 1, 2006
विवशता
पल-पल
सिकुड़ती
चली गई जिंदगी
अस्पताल के
उस बेड पऱ
बेबस,शिथिल।
दुख-दर्द को
दामन में समेटे
पथरीले रास्तों
पर हमेशा
मुस्कुराते रही।
आज,
उसकी विवशता
मुझसे
देखी ना गई ।
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चंद शब्दों में
चांद फिर भी तन्हा लगता है
टूटेसराय की कहानी होने लगी
लोग दूसरे शहर का पता पूछने लगे
लाख संभाला घरौंदे टूटते गये
संग उनकी याद की तस्कीन थी
अश्कों की कहानी वफा की बात थी
लम्हों की बात है, लम्हों में मिट जाना है।
धूप दूसरे आंगन बैठी
हवा के पर भी अब कतरने लगे हैं
धूप छीनते बाजार में
पल-पल डूबती जिंदगी
भीड़ भरे शहर में गली का पता
समन्दर के आंसू पोंछ जाऊंगा मैं
आईने से फिर कुछ पूछने लगा है
दर्द की कहानी
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