Friday, December 1, 2006

लाख संभाला घरौंदे टूटते गये

खुदा के आगे सर झुकाते गये
खुद दूसरों के सर झुकाते गये ।

ख्वाब ऐसे थे मचलने लगा
लाख संभाला घरौंदे टूटते गये ।

सारी जिंदगी गम सीनो में छुपाये रखा
लोग कब्र पर फातिहा पढ़ते गये ।

सरहद पर चाल की आंख मिचौली
वे सीने पर गोली खाते चले गये ।

लाहौर तक दोस्ती हाथ बढ़ाये चली गई
दोस्त सरहद पर बिछाते गये ।

सोची समझी बात, सोचा समझा नतीजा
दुख दर्द कहां राजनीति की चालें चलते गये ।

मंदिर-मस्जिदों पर भीड़ बढ़ने लगी
जैसे-जैसे पाप बढ़ते चले गये ।

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