Friday, December 1, 2006

समन्दर के आंसू पोंछ जाऊंगा मैं

कहानी कुछ कह ही जाऊंगा मैं
लम्हों की जुबानी सुना जाऊंगा मैं।

शोख शरारत और चांद सा चेहरा
आंखों से समन्दर की थाह पा जाऊंगा मैं।

दर्द सिमट ना सका सीने में
दर्द के आंसू से दामन धो जाऊंगा मैं।

नज्म तो फिर बन ही जायेगी
महफिल में फिर नहीं गज़ल गाऊंगा मैं।

समन्दर के आंसू देखे किसने हैं
समन्दर के आंसू पोंछ जाऊंगा मैं ।

आंखों ने धो डाले दाग दिल के
दिल की कहानी नहीं सुनाऊंगा मैं।

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