Friday, December 1, 2006

विरासत

उत्कृष्ट समागम का समावेश
स्वप्न संजोये, हाथों से चलते हल
स्वभाव विचारों के भेद,
एक सीमा का परिवेश
कोशिश जारी......
एकरुपता के आकाश की
पैरों की थकी छाप पर
यथार्थ के उजले पांवों की
पूर्णता का अविकसित प्रश्न
मां का आंचल,
खुद के साये में खुद को जिंदा रखता
ताकता आसमां की ओर
सूरज की तीखी नज़रों को विनम्रता से देखता
बेटे को कांधों के बोझ का स्पर्श कराता
रिमझिम-रिमझिम बारिश आती
रोम-रोम में जड़ता समाती
बेटे ने दी हल्की-सी दस्तक
हल और कांधों का सब्र
हरी-भरी फसल बिना कीड़ों की,
चरमराती खाट पर बैठा,
डूबते सूरज के साथ,
कल की प्रतिक्षा में तभी लौट आया
भूत/वर्तमान रूप में
सारी लालिमा के साथ/कल की सुबह पर
विरासत का ध्यान
नदियों में ठहराव के बाद
आती बाढ़ देखता रहा.....।

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