अखबार की सुर्खियों में छा गया हूँ मैं
निगाहों की बातों का राज बता गया हूँ मैं।
जद्दो जहद रही है दोस्तों में अब की बार
भीड़ भरे शहर में गली का पता बता गया हूँ मैं।
कहानी किसी इश्तहार के कम नहीं लगती अब
दर्द के सागर को खुद में समेटने लगा हूँ मैं।
निगाह से निगाह की बातों का दौर कहां
बारिश में भीग कर ठिठुरने लगा हूँ मैं।
जज्बातों की बारिश पैर फिसलना भर था
पागलों का जामा पहनाया गया हूँ मैं।
Friday, December 1, 2006
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