कुछ और कविताएँ
एक
कब्र में दफन है सारी संभावनाएं
भीगी-भीगी पलकों से
फातिहा पढ़
चला गया कोई।
दो
दर्द के आंसू
पतझड़, डूबती शाम
बेवजह यूं हीं
कोई गमगीन नहीं होता ।
तीन
हर बात पर
आंसुओं का सैलाब
अच्छा नहीं है
क्योंकि इस जमाने में
दर्द का हिसाब
अच्छा नहीं है।
चार
परेशान ना हो
हां ऐसा कुछ कर लो
अपने दर्द का नाम
मुस्कराहट रख लो।
पाँच
आसमान पर लालिमा
नहीं कालिमा छाई है
लो, देखो सूरज
आज भी ठगा गया....।
हर रोज की तरह ।
Friday, December 1, 2006
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