सारे शब्द,
टूटकर जाने लगे
आईने अब मुझसे,
चेहरे छुपाने लगे......
कोई बात नहीं
हां, मानता हूं,
आदमी, आदमी की परिभाषा
से उकताने लगे......
कैसे होगी अब भोर,
सूरज कैसे खिलखिलायेगा
कैसे दिन और रात का भेद
उस आदमी को
अब कोई समझा पायेगा......।
Friday, December 1, 2006
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