Friday, December 1, 2006

चंद शब्दों में

छोटी-छोटी कविताएँ

एक

दिल का
आंसू से
अटूट रिश्तों
कौन नहीं जानता
आँखे जब-जब
नम हुई होंगी,
दिल ने ही
साथ दिया होगा।

दो

उदास मन को
तसल्ली भर का
‘सुकून’ ही
तो दे पाता हूं मैं
जीने के लिये ‘सांसे’
जो जरुरी हैं....।

तीन


सुनहरी शाम से गहराते
अंधियारे पर दोष किसे दूं
खुद को, शाम को या उसे
जिसने बनाया
मुझे भी शाम को भी
और...।

चार


अद्भूत सृष्टि को
निहारती चली आ रही
दृष्टि अलौकिक ही तो है
फिर ऐसा क्यूं / मेरी ही रचना
बेअसर साबित हो रही
है...।

No comments: