Friday, December 1, 2006

ख्वाब

कुछ नहीं
कह पाऊंगा मैं
तुम्हारी शोख आंखें
बोलती रहेंगी
मेरे अंतस मन में
ख्वाब पलते रहेंगे
पलतों में छलकते अश्क
कैसे रोक पाऊंगा मैं।
यादों पर यादें सकुचाती
शरमाती आती रहेंगी
मन-आंगन में।
भोर के स्वप्न को कैसे
भुला पाऊंगा मैं।
दर्द के बादलों का
क्या करूं मैं
तुम्हारी ही कहो
लम्हों की साफ तस्वीर
कहां से लाऊं मैं
जानती हो, हर लम्हा,
हर पल, हर सांस,
किसे टेरती है
अमावस की रात
जरुर आयेगा, मैं मगर
चांद के साये को
कहां ढूंढ पाऊंगा मैं।

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