समतल जमी पर जब
उसने किये कई सुराख
शायद बोना चाहता
था स्वपनों का बीज....
देखना चाहता था हरियाली
पाना चाहता था
संतुष्टि की छांव
अधिकार चाहता था
घने अनुभवों का
जमीं से आकाश का
सामंजस्य न हो पाया
सुराखों को भरने पर बी
जमीं समतल न हो पाई ......।
Friday, December 1, 2006
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