Friday, December 1, 2006

मन

तर्जनी और अंगूठे के बीच फंसी
संवेदना की कलम से,
पानी पर तहरीर लिखी,
तुम,चुप रहना
झील अभी सोई है,
चांद पहलू में लिए
गीत, कोई गुनगुना रहा है,
तुमसे कहता हूं, तुम मत फेंकना
पत्थर झील में,
पानी में मचेगी हलचल,
झील थरथरायेगी,
भातर का दर्द भंवर में
उलझता तिरता ही जायेगा
मत मारना पत्थर
झील को शांत होने में
बरसों लग जायेंगे .......।

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