चलते- चलते कदम अब रुकने लगे,
लम्हें,लम्हों से दोस्ती करने लगे ।
काली सर्द रातों में सिकुड़ना जिंदगी का,
किसी ने धीरे से कहा पतझड़ अब जाने लगे ।
हर तरफ मचा हुआ है शोर,
बेवजह लोग नये चेहरे लगाने लगे ।
कामयाब होती दिखती रही साजिश
लम्हों को सुखे शाख पर ढूँढने लगे ।
दोस्ती का मतवब कितना बदला हुआ लगता,
गले मिल पीठ पर छुरे लगाने लगे ।
गमो से जो बोझिल पलकें भींगने गले
लोग दूसरे शहर का पता पूछने लगे।
Friday, December 1, 2006
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