बीज उगा नहीं,
फूटा
ज्वालामुखी स्थितियां
नजरें झुकाए
चुपचाप खड़ी रहीं,
बीज/कण-कण फैलता/ रहा माटी में
हर कण नज़्म/कविता/ग़ज़ल का रुप लेती रहीं,
जानता हूँ फसलें फैलेंगी, लहलहायेंगी
देंगी संदेश सद्भावना का
होंगी भी संवेदना से परिपूर्ण,
मैं नज़्म नहीं/दर्द बांटता हूं,
दिल की बात कहता हूं.....।
Friday, December 1, 2006
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