रात जाने क्यूं कठिन थी
शाम जो बेहद हसीन थी ।
आईना ने मुस्कराकर बात की
असलियत सचमुच बड़ी संगीन थी ।
आंख मे तिर आई कितनी लालिमा
दर्द की महफ़िल बड़ी रंगीन थी ।
हमने सारी कोशिशें पुरजोर कीं
रौशनी फिर बड़ी ग़मग़ीन थी ।
एक लम्बा सफ़र सन्नाटा बहुत
संग उनकी याद की तस्कीन थी ।
Friday, December 1, 2006
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