ये कितना सच्चा लगता है
सूरज है फिर भी दिया लगता है।
तन्हाई ने जी भर कर सोचा
वक्त फिर भी छूटा सा लगता है।
सितारों की महफिल में वैठा,
चांद फिर भी तन्हा लगता है।
हाथ पर हाथ फिर मिल चले।
आइने में चेहरा दूसरा लगता है।
जश्न गर्म जोशी से हुआ
आदमी-आदमी से जुदा लगता है।
Friday, December 1, 2006
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