दौड़ता-भागता सूरज
दिन भर की थकान पर
घनी चादरों में
रोशनी से लिपटता
काली स्याह रात के डर से
घने झुरमुटों के बीच
दुबकते पक्षी
दिया टिमटिमाता,
सिसकता दम तोड़ गया
काली स्याह चादर पर
एक तारा बन बैठ गया
कैंसर वार्ड के उस बेड पर
‘कोई’ एक तारा और बनने
लेट गया ......।
Friday, December 1, 2006
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